साम दाम दंड भेद - भाग १ Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साम दाम दंड भेद - भाग १

रमा शंकर पिछले 15 सालों से दीनदयाल के घर पर किराए से रह रहा था । रमा शंकर के पिता महादेव अपनी पत्नी गौरी के साथ गाँव में रहते थे, जहाँ उनका एक खेत था जिसमें उनके छोटे भाई का भी हिस्सा था। उसी खेत में एक पक्का मकान था, जिसमें दोनों परिवार साथ रहते और मिल जुल कर खेती करते थे। रमा शंकर गाँव से शहर आ गया था और एक सरकारी दफ़्तर में क्लर्क की नौकरी कर रहा था। रमा शंकर और उसकी पत्नी की कोई औलाद नहीं थी। दीनदयाल भी अपनी पत्नी पूनम और बेटे तरुण के साथ रहते थे। उनका चार बेडरूम का बड़ा मकान था। इतने बड़े मकान की उन्हें इस समय ज़रूरत नहीं थी इसलिए उन्होंने अपने दो कमरे किराए पर रमा शंकर को दे रखे थे।

रमा शंकर और दीनदयाल में बहुत गहरी दोस्ती हो गई थी। सभी लोग रमा शंकर को रामा तथा दीनदयाल को दीनू कहकर बुलाते थे। उन दोनों की पत्नियों की भी आपस में काफ़ी अच्छी बनती थी। एक ही घर था इसलिए आना जाना भी लगा ही रहता था। दोनों परिवार एक दूसरे की प्राइवेसी का पूरा ख़्याल रखते थे, समझते भी थे इसलिए कभी भी उन्हें 15 वर्षों के इस लंबे समय में एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं हुई थी।

दीनदयाल का बेटा तरुण बड़ा हो चुका था और अब समय आ गया था उसका घर बसाने का, उसका विवाह करने का । इसलिए दीनदयाल को अब अपने पूरे घर की ज़रूरत थी। इन 15 वर्षों में दीनदयाल ने कभी भी रमा शंकर का किराया नहीं बढ़ाया था। इतनी गहरी दोस्ती के चलते वह उन्हें अपने परिवार का हिस्सा ही समझते थे। आज अपने कमरे खाली करने के लिए कहने में दीनदयाल को बहुत ही संकोच हो रहा था लेकिन कहना तो था इसलिए हिम्मत जुटाकर एक दिन दीनदयाल ने रमा शंकर से कहा, "रामा, तरुण का विवाह तय हो गया है, तुम तो जानते ही हो। इसी कारण अब मुझे पूरे मकान की ज़रूरत पड़ेगी। शायद हमारा ऐसा साथ अब तक का ही था पर तू चिंता मत करना, हम आसपास ही तेरे लिए एक किराए का मकान ले लेंगे।"  

दीनदयाल के मुँह से यह सुनते ही रमा शंकर के चेहरे का रंग उड़ गया उसने उदासी भरे अंदाज़ में कहा, "हाँ दीनू मैं समझता हूँ। मैं किराए का मकान देखने की कोशिश करूंगा।"

अंदर से रामा का मन यह कमरे खाली करने का बिल्कुल नहीं था। उसने बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकाल दिया। 

रात को पूनम ने दीनदयाल से पूछा, "बात की क्या तुमने रामा भैया से?"

"हाँ पूनम, की है।"

"तो फिर क्या कहा उन्होंने?"

"पूनम वह बहुत ही उदास हो गया और उदासी भरे स्वर में कहा, हाँ मैं मकान ढूँढने की कोशिश करूंगा।"

"अरे मैं तो सोच रही थी रामा भैया को हमें कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। तरुण का रिश्ता पक्का होते ही वह ख़ुद हमारा घर खाली कर देंगे किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।"

"अरे ठीक है पूनम, वह वर्षों से रह रहा है हमारे साथ..."

"तो क्या हुआ, अभी तो उनका फ़र्ज़ था यह कहने का कि दीनू तू चिंता मत करना, मैंने तरुण का रिश्ता तय होते से ही अपने लिए किराए का मकान पक्का कर लिया है।" 

"पूनम तुम ज़्यादा ही ग़लत सोच रही हो, वह घर खाली कर देगा । तुम चिंता मत करो और रामा के लिए इस तरह ग़लत मत सोचो।"

उधर रामा ने ना तो मकान ढूँढने की कोशिश की और ना ही उस पर कोई विचार ही किया। 

एक हफ्ता निकल गया तब दीनदयाल ने फिर रमा शंकर से पूछा, "रामा, कहीं कोई मकान तुझे पसंद आया क्या?"

"नहीं यार मकान के किराये तो बहुत ज़्यादा हैं। तू तो जानता है दीनू कि मेरी आमदनी इतनी नहीं है।" 

"रामा तुम दो ही लोग तो हो, कहीं भी छोटा-सा मकान मिल जाएगा। तुम्हें चाहिए भी आख़िर कितना? एक रूम और किचन से काम चल जाएगा।" 

"हाँ-हाँ दीनू तू चिंता मत कर, मैं ढूँढ रहा हूँ। एक घर पसंद आया था पर उसका किराया ज़्यादा था।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक 

क्रमशः